आंकड़े गोदी चैनलों के एग्जिट पोल की तरह नहीं होने चाहिए जबकि सभी को दिख रहा था कि अप्रैल से लेकर सितंबर तक की दो तिमाहियों में निफ्टी से जुड़ी कंपनियों की आमदनी डबल डिजिट नहीं हो सकी लगातार दो तिमाहियों में उनकी आय सिंगल डिजिट अंको में ही बढ़ी है सीमेंट कंपनियों के मुनाफे में 40 % से ज्यादा की गिरावट आई औद्योगिक सेक्टर का विकास दर भी सिंगल डिजिट में दिखाई दे रहा था लोग बहुत दिक्कत में हैं अनिंद्य चक्रवर्ती ने आयकर रिटर्न के आंकड़ों का विश्लेषण कर दिखाया है कि मिडिल क्लास से 50 लाख लोग गरीबी में चले आए लोग पर्सनल लोन लेने की स्थिति
में नहीं है तो सोना गिरवी रखकर गहना गिरवी रखकर लोन ले रहे हैं क्योंकि वे अब अपनी नौकरी नौकरी में सैलरी के पर लोन लेने की स्थिति में नहीं है इस खबर के बारे में तो आपने कई जगहों पर पढ़ा होगा सुना होगा कि सोना गिरवी रखकर लोन लेने वालों की संख्या में 56 % की वृद्धि हुई है अपना गहना गिरवी रखकर लोगों ने 5 लाख करोड़ से अधिक का लोन ले लिया है इस तरह के लोन को असुरक्षित माना जाता है क्या यह आंकड़े आपसे नहीं कह रहे कि आम मिडिल क्लास की हालत बहुत खराब है भले ही वह एंटी मुस्लिम नफरत के नशे में चूर है मस्त है कि आपको कुछ समझ में आ रहा है आपकी
हालत खराब है और सरकार कहती है सब चंगा स हमारा सवाल है कि रिजर्व बैंक के आंकड़ों से भी यह सब पता चलता है और दूसरे आंकड़े भी बता रहे हैं कि देश की क्या हालत है उपभोक्ता चीजें बनाने वाली कंपनियों के सीईओ भी कह चुके हैं कि बाजार में मांग नहीं है इसलिए चीजें नहीं बिक रही हैं एशियन पेंट्स के सीईओ ने वह बात कह दी जिसे कहने की हिम्मत आजकल कोई नहीं करता कारण आप जानते हैं जमानत होती नहीं कब छापा पड़ जाए कोई नहीं जानता लेकिन यह बातें अगर पब्लिक में नहीं कही जा रही हैं तो बिजनेसमैन अपने आसपास के लोगों में कह रहे हैं अपने निवेशकों के बीच कहने लगे हैं
9 मई की यह खबर है टेलीग्राफ में छपी है एशियन पेंट्स के सीईओ अमित सिंगल अपने निवेशकों के सम्मेलन में कह रहे हैं कि आप लोग तो खुद ही समझते हैं जानने वाले हैं कहां से इस तरह के आंकड़े आ रहे हैं जो असली जीडीपी है उससे इन नंबरों का क्या नाता है किसी भी सेक्ट का आंकड़ा देखिए कहीं भी आपको हिसाब नहीं मिलता है इसलिए हमें सही आंकड़ों का पता करना होगा अगर हम 7 % की जीडीपी की बात कर रहे हैं तो क्या कुछ सेक्टर में यह 5 % है 4 % है हम तो यह भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कैसे जाना जाए कि सही में जीडीपी का विकास दर कितना है हमारा आपका
छोड़ दीजिए एशियन पेंट्स भारत की बड़ी कंपनी है इसके सीईओ मई के महीने में कह रहे हैं कि जीडीपी को लेकर यह जो दावे किए जा रहे हैं इसके नंबर कहां से आ रहे हैं जो नंबर बताए जा रहे हैं वह दिखाई तो नहीं दे रहे ढ़ लाख करोड़ रुपए की कंपनी के सीईओ का कहना था कि सच में जीडीपी का विकास दर कितना है इसका पता कैसे लगाया जाए किसी को नहीं मालूम लेकिन उन्होंने सच बोल दिया खबरें छप गई तो जाहिर है इस बयान के बाद एशियन पेंट्स की तरफ से सफाई आई आनी भी थी उन्होंने मई के महीने में ही एक बयान जारी कर दिया कि ऐसा नहीं कहा था वे जी डीपी के आंकड़ों पर अविश्वास नहीं जता
रहे थे लेकिन इस सफाई के बाद भी उन्होंने जाते-जाते एक बात तो कह दी कि ऐतिहासिक रूप से देखा गया है कि पेंट उद्योग में जीडीपी वृद्धि से डेढ़ से 1.75 गुना अधिक वृद्धि होती है यह आंकड़ा इस बार गलत हो गया इसलिए विश्लेषण करने की जरूरत है दूसरी तिमाही में जब एशियन पेंट्स ने अपने नतीजे घोषित किए यानी जुलाई से लेकर सितंबर की तिमाही में तो आप जानते हैं क्या हुआ एशियन पेंट्स का सकल मुनाफा 4% गिर गया है
रिजर्व बैंक कब से कोशिश कर रहा है बयान दे रहा है कि महंगाई को 4 फीसद की दर पर लाना है लेकिन अभी तक महंगाई की दर 4 फीसद पर नहीं आई नीचे भी नहीं गई इसका मतलब यही हुआ कि आपकी कमाई महंगाई के कारण तेजी से उड़ रही है भारतीय रिजर्व बैंक का काम है महंगाई की दर को 4 फीसद के नीचे लाना है लेकिन सितंबर के महीने में मह ई कितनी बढ़ गई आप जानते हैं हमारा मूल सवाल है कि भारत की जीडीपी के विकास दर की रफ्तार क्या थमने लगी है इससे निकलने के क्या रास्ते हैं जनता को बताया जाना चाहिए क्या भारतीय रिजर्व बैंक को यह सब पहले से नहीं दिख रहा था
और दिख रहा था तो रिजर्व बैंक ने भारत की जनता से सच क्यों नहीं कहा यह सवाल है अक्टूबर के आखिर में जब रिजर्व बैंक ने कहा उस समय इकोनॉमिक टाइम्स की हेडलाइन देखिए आरबीआई कि गुलाबी विकास पूर्वानुमान से अर्थव्यवस्थाएं हैरान की रिजर्व बैंक के गुलाबी आंकड़ों से अर्थशास्त्रियों में घबराहट बढ़ गई है वे कंफ्यूज हो गए इस रिपोर्ट के अनुसार अर्थशास्त्रियों का मानना था कि आरबीआई का अनुमान सिर्फ इसी बात पर टिका है कि ग्रामीण इलाकों में खर्च बढ़ने लग जाएगी और निजी निवेश बढ़ रहा है लेकिन इस अनुमान में शहरी खपत में आई सुस्ती और
कमजोर होते निर्यात का ध्यान नहीं रखा गया अर्थशास्त्रियों का मानना था कि अगर समय रहते इन चेतावनी और संकेतों पर ध्यान नहीं दिया गया तो विकास और भी कम हो सकता जापानी ब्रोकरेज फर्म नोमूरा ने तब कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था चक्रीय वृद्धि मंदी के चरण में प्रवेश कर चुकी है और भारतीय रिजर्व बैंक का 7.2 % जीडीपी विस्तार का अनुमान अत्यधिक आशावादी है अब जब दूसरी तिमाही के आंकड़े आपके सामने हैं तो जाहिर है इन विशेषज्ञों की बातें सही साबित होती नजर आ रही हैं तो दिख सबको रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था में ठहराव है ऐसा किसी भी अर्थव्यवस्था में हो सकता ह
इसमें बड़ी बात नहीं है अर्थव्यवस्था एं फिर से तरक्की करने लग जाती लेकिन सवाल है कि जिस समय ठहराव है कुछ गड़बड़ है उस समय आप झूठ क्यों बोलते हैं या सच्चाई को स्वीकार क्यों नहीं करते उस समय आप गुलाबी आंकड़े क्यों जारी करते हैं तो आपको समझना यह है कि हेडलाइन के जरिए तरह-तरह के खेल खेले जा रहे हैं एक दिन आंकड़ा आता है जीडीपी बैठ गई है दूसरे दिन आ जाता है जीएसटी का संग्रह बढ़ गया है यानी अर्थव्यवस्था एकदम ठीक है माहौल बना दिया जाता है मैं अर्थव्यवस्था का जानकार नहीं हूं फिर भी कोशिश रहती है कि इस पर हिंदी के दर्शक बात करें ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करें
जीएसटी को लेकर हिंदी अखबारों की हेडलाइन देखिए अमर उजाला की हेडलाइन है जीएसटी नवंबर में मालामाल हुआ सरकारी खजाना 1.82 लाख करोड़ रपए का जीएसटी संग्रह नवभारत टाइम्स की हेडलाइन देखिए जीएसटी कलेक्शन में बंपर बढ़ोतरी नवंबर में 88.5 % बढ़कर 1.82 लाख करोड़ हुआ भात खबर जीएसटी नवंबर में सरकारी खजाने में जमकर बरसा जीएसटी का पैसा
82 लाख करोड़ के पार हिंदुस्तान की हेडलाइन इकोनॉमिक मोर्चे पर अच्छी खबर 88.5 % बढ़कर 1.82 लाख करोड़ हुआ जीएसटी कलेक्शन हिंदी अखबारों में और अंग्रेजी के भी कई अखबारों में जीएसटी संग्रह की हेडलाइन खूब जश्न मना रही है ये आंकड़े माहौल बनाने के काम आ जाते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था चमक रही है हमारे आपके जैसे साधारण पाठक और दर्शक भी यही समझ सकते हैं लेकिन क्या हम इन बारीकियों को समझना चाहते हैं
82 लाख करोड़ इन नवंबर मतलब सकल जीएसटी संग्रह की रफ्तार धीमी पड़ गई बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है 19259 करोड़ का रिफंड देने के बाद जीएसटी का जो संग्रह है वह 1 साल पहले के इसी समय की तुलना में घटा है रिफंड का माइनस करने के बाद सकल जीएसटी संग्रह 11 % बढ़ा है रिफंड में 88.9 % की गिरावट आई है जबकि हिंदी के अखबार वृद्धि बता रहे हैं हिंदू अखबार ने लिखा है फेस्टिवल रश मिसिंग बट नेट जीएसटी रिवेन्यूज अप 11.%
11% इन नवंबर आ मीन शार्प ड्रॉप इन रिफंड्स मतलब जीएसटी के आंकड़ों से ऐसा नहीं दिखता त्यौहारों के समय बिक्री बड़ी है अब आप एक साथ देखिए दिखाता हूं आपको हिंदी अखबारों की हेडलाइन एक तरफ अंग्रेजी अखबारों की हेडलाइन एक तरफ आपको कितना दिखेगा एक तरफ केवल बढ़ता हुआ और दूसरी तरफ सवालों के साथ घटता हुआ दिखेगा हिंदी अखबारों में मालामाल से लेकर लबालब और उछाल का इस्तेमाल है अंग्रेजी अखबारों की हेडलाइन में गिरावट की बात है आगे का इशारा बहुत अच्छा नहीं है इस तरह हिंदी के अखबारों और चैनलों ने हिंदी पाठकों और दर्शकों को बेवकूफ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जानबूझकर हिंदी मीडिया ने पाठकों की
समझ को भोथ बनाया है ताकि आप केवल एंटी मुस्लिम मुद्दों को ही समझने के लायक बचे रह जाएं अंग्रेजी अखबारों की हालत बहुत अच्छी नहीं है उनकी भी खराब हो चुकी है मगर इस संदर्भ में उनकी हेडलाइन में इस बात की झलक मिलती है कि त्यौहारों में बिक्री कम हो सकती है तभी नवंबर महीने का जीएसटी संग्रह का विकास दर बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा हिंदी के अखबारों और चैनलों से सावधान रहा कीजिए सत तर्कता से पढ़ा कीजिए और देखा कीजिए गोदी चैनलों को देखना तुरंत बंद कीजिए कोई नुकसान आपका नहीं होगा जीएसटी का जश्न मनाने वाले हिंदी अखबारों के पाठकों के लिए कितना कुछ जानना समझना है
शिक्षित बेरोजगार नाम से एक हैंडल है इसे आर्थिक विषयों पर लिखने वाले पत्रकार विवेक कॉल चलाते हैं विवेक कॉल ने जीएसटी के आंकड़ों पर सवाल उठाया है और देखिए कि जिस तरह से वे बता रहे हैं हिंदी का कौन सा अखबार आपको ऐसे बता है और यह सवाल खुद से पूछिए कि अभी तक आपने उस अखबार को बंद क्यों नहीं किया है क्यों पढ़े जा रहे हैं उस अखबार को विवेक कॉल ने टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ट्वीट करते हुए लिखा है कि जब से जीएसटी लॉन्च हुई है तब से इस नवंबर में चौथा सबसे अधिक संग्रह देखा गया है यह टाइम्स ऑफ इंडिया.
की रिपोर्ट कहती है इस पर विवेक कहते हैं कि तब और आज की मुद्रा स्थिति इंफ्लेशन में क्या अंतर था क्या इंफ्लेशन नाम की कोई चीज होती है लोग भूल गए इस रिपोर्ट में बताया ही नहीं गया है कि मई से लेकर नवंबर तक के 7त महीनों में से 6 महीने जीएसटी का विकास दर सिंगल डिजिट में रहा है जो यह बताता है कि जीएसटी के आंकड़े इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि महंगाई बढ़ रही है दाम बढ़ रहे हैं ना कि कारोबार वॉल्यूम बढ़ रहा है यही नहीं विवेक कौल ने ग्राफ दिखाकर जीएसटी की वृद्धि दर की हालत दिखाई कि कैसे दिसंबर 20222 से गिरावट आती जा रही है कॉल लिखते हैं कि दिस इज हाउ
जीएसटी ग्रोथ ऐसा लगता है कि पिछले दो वर्षों में आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं महंगाई के कारण जीएसटी का संग्रह भले बढ़ा हो लेकिन इसी के कारण उपभोग भी घटा है आर्थिक सूचना हमारे लिए कितनी जरूरी है और उसी को लेकर हमारी जानकारी आधी अधूरी रह जाती है जीएसटी के आंकड़े त्यौहारों के सीजन को लेकर नेगेटिव इशारे कर रहे हैं तब क्या तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर तक की जीडीपी का विकास दर 7.%
4 % हो सकता है 7 % से अधिक हो सकता है जिसका ऐलान रिजर्व बैंक ने अक्टूबर के आखिर में किया था अगर जुलाई से सितंबर की जीडीपी का विकास दर 5.4 % है तो क्या इसमें 2 % तक का उछाल आ सकता है एक बात का ध्यान रखना चाहिए त्यौहारों के सीजन में जीडीपी के आंकड़ों में उछाल आता ही है यह ट्रेंड रहा है जनवरी में जब आंकड़े आएंगे तब आप देखिएगा कि इस बार त्यौहारों के सीजन के आंकड़े कुछ अलग कह रहे हैं या जो अप्रैल से लेकर सितंबर तक दिखा है वही दिसंबर तक भी दिखेगा अब आप इंडियन एक्सप्रेस की 18 नवंबर की रिपोर्ट को देखिए आंचल मैगजीन और जॉर्ज मैथ्यू की रिपोर्ट में बताया गया है कि सितंबर महीने
में भारत सरकार ने पिछले साल सितंबर की तुलना में 2.4 % कम खर्च किया है 1 144000 करोड़ ही खर्च कर सकी है सरकार अगर आप 2023 के अप्रैल से लेकर सितंबर तक केंद्र सरकार के खर्चे का हिसाब देखें तो उसकी तुलना में इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच 15.4 % की गिरावट वट आई है इस साल के बजट में टारगेट था केंद्र सरकार 11.%
11 लाख करोड़ खर्च करेगी इसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कैपेक्स कहते हैं संक्षेप में तो अब उस टारगेट को पूरा करने के लिए कैपेक्स के खर्च का विकास दर 52 % ले जाना होगा अगर सरकार के पास पैसे होते तो क्या उसके खर्चे में गिरावट आती यह सवाल आप पूछ सकते हैं जनता महंगाई और कम कमाई से बहुत परेशान है इस महंगाई के कारण जीएसटी का संग्रह भले बढ़ गया हो लेकिन तथ्य है कि सरकार अपने खर्चे का टारगेट पूरा नहीं कर पा रही है अब आपको हम राहुल गांधी का बयान पढ़कर बताना चाहते हैं राहुल गांधी का ट्वीट काफी लंबा है लिखते हैं कि भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 2 साल में सबसे नीचे 5.4 % पर आ गई है इन तथ्यों पर एक नजर
डालिए देखिए स्थिति कितनी चिंताजनक है और राहुल आगे लिखते हैं कि खुदरा महंगाई दर बढ़कर 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.21 फ पर पहुंच गई है पिछले साल अक्टूबर की तुलना में इस वर्ष आलू और प्याज की कीमत लगभग 50 % बढ़ गई है ₹ 84.5 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है बेरोजगारी पहले ही 45 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है पिछले पाच वर्षों में मजदूरों कर्मचारियों और छोटे व्यापारियों की आमदनी या तो ठहर गई है या काफी कम हो गई है आमदनी कम होने से मांग में भी कमी आई है 10 लाख से कम कीमत वाले कारों की बिक्री में हिस्सेदारी घटकर 50 % से कम
हो गई है जो 2018-19 में 80 % थी सस्ते घरों की कुल बिक्री में हिस्सेदारी घटकर करीब 22% रह गई है जो पिछले साल 38 % थी एफएमसीजी प्रोडक्ट्स की मांग पहले से कम होती जा रही है कॉर्पोरेट टैक्स का हिस्सा पिछले 10 वर्षों में 7% कम हुआ जबकि इनकम टैक्स 11 प्र बढ़ा है नोटबंदी और जीएसटी की मार से अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा घटकर 50 वर्षों में सबसे कम सिर्फ 13 % रह गया है ऐसे में नई नौकरियों के अवसर कैसे बनेंगे इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक नई सोच चाहिए और बिजनेसमैन के लिए एक न्यू डील उसका अहम भाग है सबको समान रूप से आगे
बढ़ने का अवसर मिलेगा तभी हमारी अर्थव्यवस्था का पहिया आगे बढ़ेगा राहुल गांधी का कहना है कि ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि कुछ लोगों के समूह की ही तरक्की हो रही है उन्होंने अपने ट्वीट में कारों की बिक्री में कमी से लेकर डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी का भी मुद्दा उठाया जरूरी नहीं कि राहुल गांधी जो कह रहे हैं आप उसे वही मान लीजिए लेकिन आप यह देखिए कि इन सवालों पर सरकार की तरफ से ठोस जवाब क्या आ रहा है क्या वित्त मंत्री ने आपको बताया कि एक समय जब $ डॉलर ₹45 का था तब भारत कमजोर हो गया था आज जब ₹ 84 से अधिक का हो गया है तो भारत कैसे मजबूत हो गया है
कॉरपोरेट की कमाई बढ़ गई है उनका टैक्स घटा है इससे भारत की अर्थव्यवस्था को क्या फायदा हुआ या चंद उद्योगपतियों के हाथ में पैसे दे दिए गए कोई जवाब ठीक से नहीं आता अब कोई बात ही नहीं करता कि डॉलर 84 से अधिक का हो गया है सवाल है कि अगर भारत की अर्थव्यवस्था इतनी अधिक तरक्की कर रही है तो इतनी बड़ी संख्या में गलत तरीके से भारत के नौजवान अमेरिका क्यों जा रहे हैं 95000 प्रति व्यक्ति आय वाला देश और उसके नौजवान समझ गए हैं कि हवाबाजी एक तरफ रोजी रोटी एक तरफ अमेरिका जाना पड़ा तो अमेरिका जाएंगे
· by रवीश कुमार
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